पत्थर के दिल में मोहब्बत ढूंढता रहा|
नादान हूँ में अब्ब तक यह भी नहीं समझा,
बेजान बुतों में इबादत ढूंढता रहा|
मेरे जज्बातों की कीमत यहाँ कुछ भी नहीं,
बेईमानी के बाजारों में शराफत ढूंढता रहा|
इस अजनबी दुनिया में कोई भी अपना नहीं,
गैरों की आँखों में अपनी सूरत ढूंढता रहा|
उम्मीद की थी प्यार की बस यही भूल थी मेरी,
गिरते हुए अश्कों में अपनी हसरत ढूंढता रहा..
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